आखिर कौन है दौलतराम !! छोटे से गाँव का सीधा-सादा सा बच्चा है दौलतराम । कहते हैं ना पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं, बस यही बात अपने दौलत पर भी सटीक बैठती है । दौलतराम अपने चमत्कारिक और साहसिक कारनामों की वजह से दूर-दूर तक प्रसिद्ध है । आपने एक बात तो जरूर सुनी होगी कि चाचा चौधरी का दिमाग़ कम्प्यूटर से भी तेज चलता है । तो ज़नाब दौलतराम सिरीज पढने से पहले एक बात और सुन लीजिये दौलतराम का दिमाग़ चाचा चौधरी से भी तेज चलता है । बस शुरूआत के लिये बहुत है, अब दौलतराम के किस्से पढ़ते जाइये और आनन्द लेते जाइये……
बात बहुत पुरानी है, दौलत राम अपने नाना नानी से मिलने अपने ननिहाल पीपली गाँव गया हुआ था । गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थी इसलिये दो-तीन महीनों के लिए स्कूल भी बन
गाँव में प्लास्टिक की चीजों का चलन बढ़ता चला जा रहा था, जब भी कोई पार्टी या उत्सव होता प्लास्टिक की थालियों का उपयोग होता, प्लास्टिक की ही चम्मच, ग्लास, कप, सब
गाँव के चौक में हमेशा चहल कदमी लगी ही रहती, लोग खाली बैठे टाइम पास करते रहते और किसी ना किसी बात को लेकर फालतू की बहस करते । अक्सर लोग चाय की थड़ी पर घण्टों बैठक
दौलतराम के गाँव में अधिकतर घर कच्चे ही थे । मिट्टी-पत्थर से दिवारें बनाई और ऊपर फूँस और लकड़ी से छान बना ली, ना कोई मजदूर ना मिस्त्री । जिसको घर बनाना हो, बस खु
बात बहुत पुरानी है, इतनी पुरानी है कि मनुष्य जब चाहे तब भगवान से अपना दुखड़ा रो सकता था, फरियाद कर सकता था, बस मनुष्य के प्रार्थना भर करने की देर थी । दौलतरा
दौलतराम बहुत छोटा था और उसने स्कूल जाना शुरू ही किया था । बस उसने स्कूल में अपने-अपने नये-नये दोस्त बनाये ही थे कि कुछ दिनों बाद टूर्नामेंट आ गये । दौलत के अभी
दौलत हमेशा दोस्तों के साथ ही घूमता था और अगर कोई नहीं तो उसका शेरू तो हमेशा साथ ही रहता था, उसका सच्चा दोस्त । उसके घर की रखवाली करने वाली बसंती कुतिया की चौथी
गढ़ गौतोली में प्राथमिक कक्षाओं के लिए एक ही स्कूल था और वर्षों से वहाँ सिर्फ एक ही मास्टर जी नियुक्त थे, लखमी चन्द । एक बार की बात है हमेशा की तरह कक्षाऐं च