कवितायेँ
शब्दों का जोड़-तोड़ नहीं
उन्हें लयबद्ध रखना है कविता 

नियमों को तोड़कर नहीं
नियमों को नियमों से मिलाना है कविता

किसी के पक्ष या विपक्ष की नहीं
अपने विचार लिखना है कविता

अनन्त अन्जान वस्तुओं को भी
समीप पहचान और जीवन्त करना है कविता ।
अमृतकाल के पाँच प्रण
लेखक : आर्तिका श्रीवास्तव
अमृतकाल के पाँच प्रण

आज हम यह प्रण करेंगे 
देश का मंथन करेंगे
आज़ादी के सौ बरस को
अमृत का उत्सव कहेंगे…

१) विकसित देश का लक्ष्य

अपनी वाचा और तन से

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ग़ज़ल
लेखक : संजय ग्रोवर
क्यों ना मैं अंदर लौटा
सालों बाद मैं घर लौटा

इक दिन जाने क्या सूझा
घर से फिर दफ़्तर लौटा

लोग नए ना बात नई
पीटा अपना सर, लौटा

हृदय-विदारक सन्नाटा-
घू

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महसूस करे
लेखक : संजय जैन
गमों को पढ़ने की अब
मेरी आदत सी हो गई। 
न चाहने की अब इच्छा
न खोने अब मुझे डर है। 
मैं इतना सह चुका हूँ
इस मायावी जमाने में। 
की जिंदा होते हुये भी 
मैं 

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किया छी खिसियायल इंद्र देव
लेखक : रीतु देवी
पड़ि रहल अछि जमीन में दरार
सुन रहैत अछि हाट, बजार
कानि रहल अछि लोकक संग पशु-पक्षी
मोंन मसोरने अछि देख झूला सखी
किया छी खिसियायल इंद्र देव?
तरसि रहल छी बरखा

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पेंडुलम के कंधे पर बैठा समय
लेखक : सरिता सरस
पेंडुलम के कंधे पर इत्मीनान से बैठा वक्त
झूलता रहता है अपनी ही धुरी पर
सुबह-दोपहर-शाम-रात
स्थिर-अस्थिर के गणित को धत्ता बताते हुए 

कैसा परिदृष्य उभरता होग

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मन
लेखक : सरिता सरस
हर मुद्दे पर विमर्श करने वाला मन
जब खुद की तरफ घूमता है
कितना टेढ़ा मेढ़ा हो जाता है 
मैगी जैसे......... 

मस्तिष्क की नसों में कितना विष भरा है
कितनी बेच

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अघोषित कविता की घोषित पात्र
लेखक : सरिता सरस
मैं किसी अघोषित कविता की
घोषित पात्र हूं
मेरी उद्घोषणा के लिए ईश्वर ने एक डॉक भेजा था
गलत पते के साथ
ईश्वर से भी होती है गलतियां
पहली बार पता चला....

ओस

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प्रीत के धागे
लेखक : सरिता सरस
प्रीत के धागे
बुन रहीं हूं
प्रेम के आसमानी चादर
सतरंगी धागों से.....

सातो धागे में दो ही धागे बांधे हैं सब
एक धागा माई
एक बाबुजी.... 

प्रेम...
प्रेम

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कविता और तुम
लेखक : सरिता सरस
तुम मेरी कविता में
पानी जैसे हो...
पसर जाते हो पन्नों पर
मिटा देते हो अक्षर..

समझती हूं अक्षरों में नहीं समा सकते तुम
शब्द तन्हा है...
प्रेम की नदियाँ फ

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मैं लिखना चाहती हूँ
लेखक : सरिता सरस
मैं लिखना चाहती हूँ
आंसुओ की भाषा 
आंसुओ की भाषा का भाषाई अनुवाद हो सकेगा..? 
विरह की छाती पर बैठ सकती है मुस्कान..? 

मैं पानी पर लिखना चाहती हूँ 
उसकी ल

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तू मेरी कल्पना
लेखक : अक्षय भंडारी
तू मेरी कल्पना और
में तेरी पहचान बन जाऊं
तू रूप की रानी बने तो
में तेरा निखार बन जाऊं
तू मुझे समझ ले तो
में ओर को भी समझाऊ
जो तू जिधर चलेगी
तो उधर तेरे स

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ऐ व्यस्त जिंदगी........
लेखक : आर्तिका श्रीवास्तव
ऐ व्यस्त जिंदगी तुझसे दो पल मुझे चुराने है
कुछ प्यारे लम्हें अपनों के संग बिताने हैं।

कभी मैं बैठूं संग सहेली, कभी दोस्तों संग गाऊं
कभी मैं पाऊं संग प्यार 

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आर्तिका श्रीवास्तव
लेखक : आर्तिका श्रीवास्तव
चैत्र मास का प्रथम चंद्रोदय
आओ मनाए नव वर्ष आज
मंगल गाए खुशी मनाएं
सनातनी नव वर्ष है आज।

ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना 
इसी दिन से की थी शुरुआत
भारतीय नू

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मेरा मन
लेखक : आर्तिका श्रीवास्तव

रोशनी की हर एक किरण को भेदता सा मेरा मन,
रात के अंधियारे को बस चीरता सा मेरा मन।

है नहीं मालूम कैसे चल रही है श्वास यह,
इन श्वास की गहराइयों को तोलता स

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माँ
लेखक : अक्षय भंडारी
पूजा की थाल लेकर खड़े यहाँ
उम्मीदो लेकर आया यहां
माँ ही है जो लगता है पहला मन्दिर यहां
जन्म से हमे उंगलियों को पकड़र
दुनिया घुमाती हैं माँ
आरती भाव से करता ह

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