लघु कथा

			
समर्पण
लेखक : रीतु देवी
रामदेव शर्मा बहुत दुखी हैं कि महीनों से गणेश जी की मूर्ति गढ़ने में लगा हुए हैं लेकिन बूढ़े एवं बीमारी के कारण मूर्ति बनी नहीं है।
    " ओह ! मैं क्या करूं विध

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सूखते रिश्ते
लेखक : तरूणा
 
पास में एक बड़ा सा पेड़ था,
मैं और मेरा बेटा ठीक उसके सामने खड़े थे, मैं बहुत देर से उसे देखे जा रही थी। 
इतने में बेटे ने पूछा - क्या देख रही हो ? 
मैंने

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मां की टूटन
लेखक : रीतु देवी
सिया देवी आज अंदर से टूट गयी है। बड़े मन्नत से बेटा रमेश हुआ था। बहुत प्यार से लालन-पालन कर डाक्टर बनाया। पर,आज वह होली दिन अपनों के लिए तरस रही है। आंखों से अश

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यादगार होली
लेखक : डॉ. प्रभा जैन
होली का नाम आते ही मन में उल्लास, आँखों में रंग और मुँह में गुंजियाँ का स्वाद आ जाता है।

रंग होली पर यदि गुलाल लगाया है तो कोई बात नहीं, पर गीला रंग पिचकारी 

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लग गई
लेखक : अनंतराम चौबे अनंत
घर में आकर यदि कोई पढा लिखा बेरोजगार बेटा माँ से कहे मम्मी मम्मी लग गई मां क्या कोई भी सुनेगा यही सोचेगा कहीं चोट  लग गई होगी सभी के मन में दुख होता है पूरे माह

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मन की दिवाली
लेखक : रीतु देवी
दीपों का पर्व दीपावली प्रकाश के साथ -साथ अद्भुत आनंद देती है।अंधियारी  रात दीपों की लड़़ियो से चमक उठती है। पूरा वातावरण शंख ध्वनि से गूंज उठता है।माता लक्ष्मी औ

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मन की दिवाली
लेखक : मनीषा गुप्ता
“मन की दिवाली “शीर्षक बहुत ही रोचक लगा तो लिखने का मन बना लिया, सोचा इसी बहाने दिवाली की यादें ही ताजा हो जाएंगी।
 बचपन की दिवाली याद करती हूं तो आज भी मन बहुत

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मन की दिवाली
लेखक : अशोक कुमार जाखड़

दीपावली, या दिवाली अर्थात दीपो वाली यह त्योहार.शरद ऋतु के प्रारम्भ मे हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू त्यौहार है ।दीपावली का पर्व कार्तिक मास की अ

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मन की दिवाली
लेखक : डॉ मंजु गुप्ता
मन की दिवाली 

बरसों बाद याद है आया , 
ले के बचपन में आया ।
मात संग हम दीपक लेने , 
जाते खील , बताशे लेने ।

 है खुशी भरा  पर्व निराला , 
होता तिमिर है 

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आधुनिक भगवान
लेखक : आशा जाकड़
"बेटा मुझे पूजा करना है ,भगवान को नहलाना है। पानी कहाँ से लूँ ?"

अरे माँ पीने के लिए मैं बड़ी बाटल मंगाता हूँ,इसी से भगवानजी को नहला दो  या फिर टंकी में जो पा

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लॉकडाउन में कन्या पूजन
लेखक : आशा जाकड़
माँ, लॉकडाउन में कन्या पूजन में कन्या पूजन कैसे करोगी ?
बेटा, अष्टमी पूजन तो करेंगे ही जैसे अपन रोजाना  देवी की पूजा करते हैं, वैसे ही हलवा चना का भोग लगाकर पू

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दो राहें........
लेखक : तरूणा
मैं दो राहें पे खड़ी थी,दोनों ही मुझको प्यारी थी । बड़ा मुश्किल होता है जब हमारा मन दोनों राहों पे जाना चाहता है और दिमाग कहता है की नहीं तुम्हें एक ही राह चुन्नी

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जीवन-मृत्यु
लेखक : रीतु देवी
वीरभद्र अपने  राष्ट्र का वीर  सैनिक था।वह माँ की आँखों का तारा भी था । अपने देश की सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हो गया है । उसका पार्थिव शरीर सैनिक उसके घर लाए ।

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पेड़ों की चिन्ता
लेखक : देवेन्द्र कुमार गुप्ता
जैसे ही शहर में यह खबर फैली कि तीन हजार पेड़ों को सरकार ने काटने का निर्णय लिया है क्योंकि शहर के चारों ओर रिंग रोड़ बनाना है, अगले ही दिन आंदोलन शुरू हो गये । सभ

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जीवन-साथी
लेखक : रीतु देवी
शाम का समय है, मंद शीतल पवन बह रही है ।
राकेश पार्क में टहलते हुए सोच रहा है," आज नीना को सब कुछ बता दूँगा, उससे प्यार का इजहार भी कर दूँगा"
मुस्कुराती हुई नी

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