उपन्यास
कविता एक चिट्ठी की तरह होती है जो क्षण भर के लिए दूर बैठे व्यक्ति या जगह को हमारे सामने ले आती है और फिर पानी के बुलबुले की तरह सामान्यतयः  हमारे सामने से हट जाती है। 

कहानी भी घंटे दो घंटे के लिए हमें अपने साथ ले जाती है लेकिन उपन्यास, उपन्यास का तो अपना अलग ही संसार है , उसकी एक अपनी जिंदगी है। पाठक उपन्यास के हर पात्र की जिंदगी स्वयं जीता है, उसे समझता है और उसके निर्णय पर अपने विचार भी रखता है। 

लेखक वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं का शब्दों की लेखनी से ऐसे चित्र बनाता चलता है की पाठक के सामने आते ही वो जीवंत हो जाते हैं और पाठक स्वयं उसका एक हिस्सा महसूस करता है। 
शब्दों का यही चित्रण 'उपन्यास' कहलाता है और चित्रकार 'उपन्यासकार'। 
और मंत्रीजी नेतियाने लगे...... पहली कड़ी
लेखक : राजीव सिन्हा
भाग-1 "अवधबिहारीजी मंत्री बन गए, अवधबिहारीजी मंत्री बन गए " इस मुख्य समाचार की सुर्ख़ियों से सारे स्थानीय समाचारपत्र के पहले पन्ने भरे पड़े थे। अरे भाई इसमें इतना

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चुप रहो-अब हम बोलेंगे
लेखक : देवेन्द्र कुमार गुप्ता
अरे यह खाने का डब्बा तो लेते जाओ………पीछे से आवाज आई
ओहो भूल गया…….
 शंकर त्रिपाठी बस आधा पैडल मारकर साइकिल की सीट पर बैठने ही वाले थे कि आवाज सुनकर उठा हुआ प

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वह जो अनकहा रहा (भाग - 2)
लेखक : तरूणा
पहली कड़ी से आगे ...

शाम हो चली थी ढलते सूरज पर मैंने एक टकटकी लगा रखी थी।

ढलते सूरज के साथ वह जो आसमान में कितने ही रंगों का मिश्रण दे जाता है, कितना मोहक

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वह जो अनकहा रहा (भाग - 1)
लेखक : तरूणा
उसने बालकनी पर एक हाथ रखा और दूसरा हाथ गाल पर रखते हुए मेरी ओर देखा ।
मैं नीचे खड़ा उसे गौर से देख रहा था। उसने मेरी तरफ देखकर बड़ी मासूमियत से कहा-“क्या तुम स

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गुफ़ा का भूत (अंतिम कड़ी)
लेखक : देवेन्द्र कुमार गुप्ता
चौथी कड़ी से आगे ...

 हे भगवान……… यह भूत है….. गुफ़ा का भूत………
जंगल की गुफा से एक भूत बाहर निकल कर गाँव में आ गया है
चिल्लाते हुए राघव सबके बीच से बाहर की 

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गुफ़ा का भूत (चौथी कड़ी)
लेखक : देवेन्द्र कुमार गुप्ता
तीसरी कड़ी से आगे ...
हाँफते-हाँफते दोनों तेजी से जंगल के बाहरी क्षेत्र में आ गए थे, गाँव अब दिखाई दे रहा था लेकिन जैसे ही दोनों गाँव में आए, गाँव में कोलाहल मच

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गुफ़ा का भूत (तीसरी कड़ी)
लेखक : देवेन्द्र कुमार गुप्ता
दूसरी कड़ी से आगे ...

ना जाने कितनी देर तक सोहनलाल उस चाँदी के छल्ले को उलट पलट कर देखता रहा, अरे चाँदी है
भाई एकदम चांदी...नेकराम ने जैसे उसे नींद से जगाया।

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गुफ़ा का भूत (दूसरी कड़ी)
लेखक : देवेन्द्र कुमार गुप्ता
पहली कड़ी से आगे ...

… और फिर लगभग खींचते हुए नेकराम उसको साथ ले चला। 

 बस दस-बीस कदमों की दूरी तय करते ही जंगल के वातावरण का अंतर समझ में आने लगा, वृक्षों

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गुफ़ा का भूत (पहली कड़ी)
लेखक : देवेन्द्र कुमार गुप्ता
सोहनलाल........ओ...सोहन लाल, कुंदा खड़काते हुए नेकराम ने आवाज लगाई।

 नेकराम और सोहनलाल दोनों पड़ौसी थे, दोनों ही गरीब थे, जंगल से सूखी लकड़ियाँ इकट्ठा कर गाँव म

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